Wednesday, 10 October 2012

साम्प्रदायिक सौहार्द की प्रतीक कलन्दर की दरगाहें


सालाना उर्स मुबारक एवं भंडारा 17 व 18 नवम्बर को
साम्प्रदायिक सौहार्द की प्रतीक कलन्दर की दरगाहें
 इन्द्री 
हजरत इलाही बू अली शाह कलंदर साहिब की इन्द्री स्थित दरगाह पर सालाना उर्स मुबारक एवं भंडारा 17 व 18 नवम्बर को बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है । इस दरगाह पर होने वाले सभी कार्यक्रम  दरगाह कमेटी प्रधान एवं गुरु महाराज राजकुमार की देखरेख में किये जाते है ।  राज कुमार जी को आज से 38 वर्ष पूर्व कलंदर साहिब स्वप्न में आकर कहा था कि उनकी दरगाह इन्द्री में भी है । इससे पूर्व वह पानीपत स्थित दरगाह पर मत्था टेकने जाते थे । उसके बाद  उन्होंने इन्द्री  की दरगाह पर जाना आरम्भ किया और तभी से यहाँ पर भंडारा  व उर्स मुबारक मनाने का सिलसिला शुरु हुआ । आज इस उर्स मुबारक ने विशाल रूप धारण कर लिया हैं बाबा जी के उर्स पर देश के कई जाने माने कव्वाल बाबा जी की महिमा का गुणगान करेंगे । इस अवसर पर एक विशाल शोभा यात्रा भी निकली जाएगी , जिसमे बाबा जी पालकी ,हाथी की सवारी , रथ बग्गी व पंखो  के अलावा बैंड आदि को शामिल किया जायेगा । यह शोभा यात्रा वार्ड नं0 1 दरबार कलंदर  साहिब से शुरू होकर शहर के विभन्न रास्तो से होते हुए शाम को दरगाह शरीफ पर पहुंचेगी ।  इस उर्स में हरियाणा ,पंजाब ,राजस्थान ,हिमाचल प्रदेश ,मध्य प्रदेश से श्रद्धालुगण आकर बाबा जी की दरगाह पर मत्था टेक कर अपनी मनोकामना पूर्ण होने की दुआ मांगते है । हजरत बू अली शाह कलंदर साहिब की चार दरगाहें पानीपत ,करनाल,बुढा खेडा और इन्द्री में स्थित है। इनकी मुख्य दरगाह पानीपत में स्थित है।  इन चारो  दरगाहो में बू अली शाह कलंदर साहिब की मजार है । यह विवाद का विषय है की इनको इंतकाल  के बाद कहां  दफनाया  गया । कहा जाता है की बू अली शाह कलंदर जब पानीपत से बुढाखेडा आये तो समीप ही एक यमुना नदी बहती थी। वहां एक जगह खड़े होकर इन्होने 12 वर्ष तक खुदा की इबादत  की । 12 वर्ष के बाद खुदा ने इनसे पूछा की तुझे क्या चाहिए तो इन्होने कहा कि मुझे इजरत इलाही की ताकत चाहिए । खुदा ने कहा कि वह तो मुझे एक बार देनी थी, सो  दे चुका हूं  पर तुझे मै हजरत अली शाह की बू देता हूं  इस कारण इसका नाम बू अली शाह कलंदर पड़ा । इनका वास्तविक नाम सरफुदीन था ।ं  बूढ़ाखेडा व पानीपत से इनके कुछ रोचक किस्से जुड़े है । कहते है कि एक बार हजरत निजामुदीन ओलिया शेर की सवारी कर बूढ़ा खेडा आये तो उस समय बू अली शाह कलंदर दीवार पर बैठे मंजन कर रहे थे । ओलिया को देखते ही दीवार को  आदेश दिया  मेहमान नवाजी के लिए 72 कदम आगे चल । यह कलंदर का चमत्कार ही था की दीवार 72 कदम आगे चली और कलंदर दीवार से उतरकर ओलिया से गले मिले । बूढ़ा खेडा स्थित दरगाह मे  मुलाकात की वह दीवार आज भी देखी जा सकती हैं ओलिया को अपनी करामत पर अहंकार था , उसने कलंदर साहिब  को कहा कि  मेरे शेर के  लिए भोजन कि व्यवस्था  करें । कलंदर साहिब  ने कहा की शेर को मेरी गौशाला मै छोड़ दो वह खुद भोजन कर लेगा । अगली सुबह निजामुदीन ओलिया को जब गौशाला  मे अपना शेर नही पाया तो ओलिया ने कलंदर साहिब  को कहा की मेरा शेर गायब है । उसे वापिस दिलवाओ । कलंदर साहिब ने कहा कि आप मे इतनी करामात हैं तो आप अपने शेर को तलाश लो,लेकिन उनको जब कही पर भी अपना शेर नही मिला तो उन्होने कलंदर साहिब  से फरियाद कि की उनका शेर वापिस कर दो तब कलंदर साहिब ने गाय से कहा की इनका शेर वापिस कर दो । जैसे ही गाय ने अपना खोला मुह तो शेर बाहर निकल पड़ा । कलंदर  साहिब  का चमत्कार देखकर  ओलिया का अहंकार  ख़त्म हो गया और ओलिया ने कलंदर साहिब  से क्षमा  याचना की ।   

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